जय हिन्द...

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

संचार के आधुनिक माध्यमों से समृद्ध हुआ है हिन्दी साहित्य
राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोधार्थियों ने प्रस्तुत किये शोध पत्र
रायपुर। संचार के माध्यमों के विकास के साथ-साथ हिन्दी साहित्य का भी विकास हुआ है। हिन्दी साहित्य को आधुनिक संचार माध्यमों ने वैश्विक पहचान दी है। एक समय साहित्य और पत्रकारिता का अटूट संबंध था किन्तु आज दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं जिसे खत्म करने की आवश्यकता है। दूसरों तक अपनी बात पहुँचाने में व्यक्ति स्वयं माध्यम है। 

 
उपर्युक्त बातें मैट्स विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी साहित्य और संचार माध्यम विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में अतिथियों, प्राध्यापकों तथा शोधार्थियों ने व्यक्त कीं। हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी ने बताया कि राष्ट्रीय संगोष्ठी के  अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार गीताश्री (दिल्ली), विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश नैयर, कल्याण महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डा. सुधीर शर्मा, कार्यक्रम की अध्यक्ष डा. उर्मिला शुक्ल, कुलाधिपति श्री गजराज पगारिया, कुलपति प्रो. कर्नल डा. बैजू जान,प्लेसमेंट अधिकारी दीपिका ढांढ सहालकार तथा वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल पुसदकर, सत्र के विषय विशेषज्ञ डा. गौरी अग्रवाल, डा. अनुसुईया अग्रवाल, डा. सरस्वती वर्मा सहित विभिन्न विभागों व महाविद्यालयों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापकगण, शोधार्थी तथा विद्यार्थि उपस्थित थे। समारोह का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन के साथ किया गया।  इस अवसर पर मुख्य अतिथि गीता श्री ने पत्रकारिता व हिन्दी साहित्य के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं जिन्हें कम करना संभव प्रतीत नहीं होता। साहित्यकारों ने ही पत्रकारिता को आगे बढ़ाया है। प्राचीन काल से अब तक सफर तय करते-करते दोनों अलग-अलग हो गये। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश नैयर ने कहा कि पहले जो साहित्यकार होता था वह पत्रकार भी हुआ करता था और वही पत्रकार श्रेष्ठ माना जाता था जिसे साहित्य में रूचि हुआ करती थी। स्वतंत्रता के आंदोलन में अंग्रेजो के शासनकाल में साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है जन-जन को अपने साहित्य के माध्मय से जागरुक करने में समय के साथ-साथ साहित्य की प्रवृत्तियाँ भी बदली हैं। विशिष्ट अतिथि डा. सुधीर शर्मा  ने कहा कि  संचार के आधुनिक माध्यमों के संबंध में विस्तार से बताते हुए कहा कि वर्तमान में कोई भी साहित्यकार फेसबुक, ब्लाग आदि के माध्यम से अपनी रचनाओं को विश्व में बहुत की कम समय में पहुँचाने में सक्षम है। 
इस अवसर पर कुलाधिपति श्री गजराज पगारिया ने कहा कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और हम सभी का कर्तव्य है कि हिन्दी भाषा को हम समृद्ध करें। श्री पगारिया ने कहा कि राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से हिन्दी साहित्य का प्रचार-प्रसार होगा तथा शोधार्थियों को भी इसका लाभ प्राप्त होगा। इस अवसर पर कुलपति  प्रो. कर्नल डा. बैजू जान ने कहा कि व्यक्ति स्वयं एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम है अपनी बातों को जन-जन तक पहुँचाने का। समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा. उर्मिला शुक्ल ने कहा कि जब लिखने के लिए कागज नहीं था तो भोज पत्र पर लिखा गया, चमड़े पर भी लिखा गया। समय के साथ-साथ प्रेस की स्थापना हुई और प्रकाशन प्रारंभ हुआ। पत्रकारिता और साहित्य का अटूट संबंध रहा है। सचार के आधुनिक माध्यमों ने साहित्य को समृद्ध किया है। दूरदर्शन, इंटरनेट के माध्यम से साहित्य जन-जन तक पहुंच रहा है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सलाहकार श्री अनिल पुसदकर ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय की प्रशंसा की एवं कहा कि आज के समय में हिन्दी विभाग कई शैक्षणिक संस्थानों से लुप्त हो गये हैं एसे में मैट्स विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी साहित्य और संचार माध्यम जैसे विषयों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करना प्रशंसनीय है। समारोह में राज्य के विभिन्न जिलों के महाविद्यालयों से आए शोधार्थियों ने विभिन् विषयों पर अपने शोध पत्र की प्रस्तुत दी। इसके पूर्व अपने स्वागत भाषण में विभागाध्यक्ष हिन्दी डा. रेशमा अंसारी ने कहा कि हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता का अनूठा और गहरा संबंध है, भारतेंदु जी हों या महावीर प्रसाद द्विवेदी, निराला हों या नामवर सिंह जी , सभी ने साहित्य को समाज से जोड़ने के लिए साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

जैसे-जैसे संचार साधनों का विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे देश-दुनिया की खबरों से हम अतिशीग्र अवगत होते हैं, साहित्य भी इससे अछूता नहीं है। संचार माध्यमों का प्रभाव साहित्यिक क्षेत्रों में भी दिखाई देता है अतः राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय हिन्दी साहित्य और संचार माध्यम हमने इसलिए चुना कि वास्तव में आज इस विषय पर चर्चा की आवश्यकता है। इस अवसर पर अतिथियों ने राष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन किया। सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
सुदीप्तो चटर्जी को श्रेष्ठ शोध पत्र का पुरस्कार
राष्ट्रीय संगोष्ठी में सुदीप्तो चटर्जी को श्रेष्ठ शोध पत्र का पुरस्कार प्रदान किया गया। श्री चटर्जी ने सोशल मीडिया और पर्यटन विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। विषय विशेषज्ञ डा. अनुसुईया अग्रवाल, डा. गौरी अग्रवाल एवं डा. सरस्वती वर्मा तथा विभागाध्यक्ष हिन्दी डा. रेशमा अंसारी ने स्मृति चिन्ह तथा प्रमाण पत्र देकर श्री चटर्जी को पुरस्कृत किया। 
विभिन् विषयों पर प्रस्तुत किये गये शोध पत्र
राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्राध्यापकों तथा शोधार्थियों ने विभिन्न विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किये। इनमें हिन्दी साहित्य और सोशल मीडिया का प्रभाव, प्रोद्योगिकी और हिन्दी भाषा, आधुनिक मीडिया: भाषा और प्रकृति, तकनीकी युग में हिन्दी साहित्य का बदलता स्वरूप, प्रिंट मीडिया: चुनौतियाँ और संभावनाएँ, हिन्दी साहित्यकारों का पत्रकारिता में योगदान, अस्मितामूलक विमर्श और हिन्दी पत्रकारिता, वर्तमान परिदृश्य और साहित्य, हिन्दी साहित्य में स्त्री चिंतन की चुनौतियाँ, 21वीं सदी के साहित्य में सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना, आधुनिक हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ, हिन्दी साहित्य के विकास में मीडिया की भूमिका, भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी, हिंदी के विकास में वेब मडिया का योगदान, राष्ट्र के विकास में हिंदी का योगदान, साहित्य, पर्यटन और संस्कृति, सोशल मीडिया और पर्यटन, लोक संस्कृति के विकास में मीडिया की भूमिका आदि प्रमुख रूप से शामिल थे।