जय हिन्द...

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

हिन्दी सप्ताह में कवियों ने बिखेरी छटा

मैट्स विश्वविद्यालय में हिन्दी सप्ताह का शुभारंभ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन से
रायपुर, 10 सितंबर 2018 मैट्स विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित हिन्दी सप्ताह का उद्घाटन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के आयोजन के साथ किया गया। कवियों ने गृहस्थ जीवन से लेकर समसामयिक सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक मुद्दों के साथ-साथ हिन्दी भाषा के महत्व पर भी श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया। कवियों ने अपनी मंत्रमुग्ध करने वाली रचनाओं की छठा बिखेरी। अखिल भारतीय कवि सम्मेलन संस्कृति के विभिन्न रंगों से सराबोर रहा। 
मैट्स विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रेशमा अंसारी ने बताया कि मैट्स विश्ववविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी दिवस के अवसर पर 10 सितंबर से 14 सितंबर तक रंगारंग हिन्दी सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। समारोह के प्रथम दिवस 10 सितंबर को अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें अनेक ख्यातिप्राप्त कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से संस्कृति के विभिन्न रंग बिखेरे। इनमें मनोहर मनोज, अर्चना अर्चन, मयंक शर्मा, शशि दुबे, राजेश जैन राही, कुमार जगदलवी, मनोज शुक्ला, सहित अनेक कवियों ने समसामयिक विषयों पर काव्य पाठ किया। समारोह के मुख्य अतिथि संस्कृति विभाग के उपसंचालक श्री राहुल सिंह, विशेष अतिथि वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल पुसदकर थे। इस अवसर पर कुलपति प्रो. कर्नल (डॉ.) बैजू जॉन, कुलसचिव श्री गोकुलानंदा पंडा, प्लेसमेंट अधिकारी श्रीमती दीपिका ढांढ, सहित सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।
उद्घाटन समारोह

विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी पुस्तक भेंटकर स्वागत करते हुए।

माननीय कुलपति प्रो. कर्नल (डा.) बैजू जान मुख्य अतिथि का स्मृति
चिन्ह भेंटकर स्वागत करते हुए। 

विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी पुस्तक भेंटकर स्वागत करते हुए।
टीवी धारावाहिक “वाह-वाह क्या बात है” में अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले प्रसिद्ध कवि मनोहर मनोज ने समाज में फैली विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए कहा “इस देश में लोग जहर से नहीं, दवाइयों से मरते हैं।” उन्होंने विभिन्न राजनीतिक समस्याओं पर भी व्यंग्य कसे। जबलपुर से आईं अर्चना अर्चन ने कहा “जमाने भर में अर्चन, प्यार के किस्से नहीं होते, अगर राधा नहीं होती तो यह मोहन नहीं होता।” छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कवि श्री सुरेंद्र दुबे जी की धर्मपत्नी कवियित्री श्रीमती शशि दुबे ने गृहस्थ जीवन की सच्चाइयों को अपनी रचनाओं के माध्यम से सामने रखा। उन्होंने कहा “फूलों की कोई कद्र न कीमत कोई होती, गर उसमें बसी मीठी सी खुशबू नहीं होती, हमारे चारों तरफ गर ये हस्ती खिलखिलाती बेटियाँ न हों तो ये दुनिया किसी के रहने के लायक नहीं होती।” युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा “बेटे ढूढने में रहे कागज वसीयतों का, बेटियाँ तो बाप की दवाई ढूंढती रही।” राजेश जैन राही ने हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति को रेखांकित करते हुए कविता पाठ किया। मनोज शुक्ला, कुमार जगदलवी ने भी अपनी रचनाएँ पढ़ीं।
इसके पूर्व समारोह का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। अपने स्वागत भाषण में हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रेशमा अंसारी ने कहा कि हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये निरंतर हिन्दी विभाग द्वारा प्रतिवर्ष हिन्दी सप्ताह के अंतर्गत इस तरह के रचनात्मक आयोजन किये जाते हैं। अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का यह छठवां अवसर है, वर्ष 2013 से लगातार हम कवि सम्मेलन का आयोजन करते आ रहे हैं।  हिन्दी सप्ताह के अंतर्गत विद्यार्थियों के लिये कहानी लेखन, लोक नृत्य, लोक गीत,  निबंध, लेखन आदि स्पर्धाओं का भी आयोजन किया गया है।  हिन्दी सप्ताह का समापन समारोह 14 सितंबर को आयोजित किया जाएगा।